अन्न दानं समं दानम् न भूतो न भविष्यति।
देवर्षि-पितृ-भूतानां तृप्तिरन्नेन जायते॥
अर्थात अन्नक्षेत्र के समान दान न पूर्व में हुआ है, ना अब है, ना आगे होगा। क्योंकि देवताओं की, देवियों की, पितरों की इत्यादि सर्व की तृप्ति अन्न से ही होती है।
अत: स्पष्ट है कि अन्न दान से बढ़कर कोई दान हो ही नहीं सकता। इसलिए पूज्य महाराज जी ने श्रीधाम वृदावन में विचरण कर भक्ति कर रहे साधू-संतों की एवं जरुरतमंदों की सेवा को देखते हुए नित्य जीवनपर्यन्त अन्नक्षेत्र की सेवा करने का संकल्प लिया जिससे आप जैसे दानवीर जुड़कर सफल बना रहे है एवं पुण्य अर्जित कर रहे हैं।
इस पुण्यशाली कार्य से आप भी जुड़कर अखण्ड यश और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं।